Shiv Stuti Lyrics in Hindi With PDF Download 2023 | शिव स्तुति मंत्र और श्लोक | Shiv Stuti Mantra & Shlok Sanskrit

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Shiv Stuti - शिव स्तुति - Shiv Stuti Lyrics in Hindi With PDF Download
Shiv Stuti - शिव स्तुति - Shiv Stuti Lyrics in Hindi & Sanskrit  With PDF Download

शिव स्तुति मंत्र के बारे में - About Shiv Stuti Mantra & Shlok 


शिव स्तुति मंत्र का महत्व

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार शिव स्तुति मंत्र भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली और प्रभावी मंत्रों में से एक होते हैं। हिन्दू ग्रंथों में शिवजी के कई सारे शिव स्तुति मंत्रो का उल्लेख हैं। अगर आप इनमें से एक का भी जाप कर ले तो आपकी पूजा की सफल हो जाती है। अगर आप शिवजी को प्रसन्न करना चाहते हो तो यह मंत्र कारगर साबित होगा। 

शिव स्तुति मंत्र का लाभ

शिव स्तुति मंत्र भगवान शिव को खुश करने का उचित मार्ग है। इसका रोज जाप करने से भक्तो पर शिव कृपा बनी रहती है। हमारे जीवन में आये सभी कष्टों का नाश होता है। यह मंत्र आगे भविष्य में आने वाले संकटों से दूर रखता है और ग्रह क्लेश को भी कम करता है। शिव पूजा करने के पश्चात् अगर पूरा परिवार एक साथ मिलकर शिव स्तुति मंत्र का एक बार जाप करता है तो घर में खुशियाँ बनी रहती है।

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शिव स्तुति पाठ ( Shiv Stuti Paath  )

।। शिव स्तुति मंत्र ।।


कर्पुरगौरं करुणावतारं 1 संसार सारं भुजगेन्द्रहारं। 0

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे 5 भवं भवानीसहितं नमामि।। 0

।। शिव स्तुति श्लोक।। 

पहला श्लोक

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं 2 गजेन्द्रस्य कृत्तिं  3 वसानं वरेण्यम। 1

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं 8 महादेवमेकं स्मरामि 1 स्मरारिम।। 1


पहले श्लोक का मतलब

अर्थ :- हे पाशुपतास्त्र के मालिक, पापो का नाश करने वाले ( पाप नाशक ), सभी देवताओं के स्वामी जो गजराज के चर्म के वस्त्र धारण किये हुए है। जिनके बालो की जटाओं के मध्य से ( बीच में से ) माँ गंगा के जल की धारा प्रवाहित हो रही हो, उन्ही एक महादेव की आज मैं स्तुति करता हूँ। 


विस्तार से समझे :- शिव जी के पास पाशुपतास्त्र नामक अस्त्र है इसलिए उन्हें इसका मालिक कहा गया है। यह अस्त्र बहुत विनाशकारी है। यह अस्त्र पूरी सृष्टि का विनाश कर सकता है। उनकी कृपा होने पर हमारे सभी पापो का नाश हो जाता है। उन्हें देवों का देव महादेव कहते है क्योकि सभी देव इनकी पूजा करते है। सिर्फ देव ही नहीं वे तो असुरों में भी पूजनीय है। वे हाथी की चमड़ी को वस्त्र के रूप में धारण किये हुए है। जब भागीरथ जी माँ गंगा को धरती पर लाए थे तो उनकी धार तेज होने के कारण उन्होंने शिवजी की तपस्या की और शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओ से होकर धरती पर उतारा। ऐसे शिव जी की मैं वंदना करता हूँ।  


दूसरा श्लोक

महेशं सुरेशं 3 सुरारातिनाशं विभुं 5 विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। 2

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं 7 सदानन्दमीडे प्रभुं 9 पञ्चवक्त्रम्।। 2


दूसरे श्लोक का मतलब

अर्थ :- महेश, सुरेश जैसे देवताओं के अहम् ( अहंकार ) का नाश करने वाले, इस जगत के नाथ, विभूति से अपने शरीर को सुशोभित करने वाले, सभी में विद्यमान रूप वाले, त्रिनेत्रों वाले, सदा आनंदित रहने वाले, पंच तत्वों के स्वामी ऐसे महादेव है। 

विस्तार से समझे :- शिव जी ने महेश और सुरेश नामक देवताओं के अहंकार का नाश किया था। इन्हें इस संसार का स्वामी कहा जाता है। शिवजी अपने शरीर पर भस्म लगाए हुए रहते हैं जिससे उनके शरीर की शोभा बढ़ती है। उनके तीन आंखें होने के कारण उन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। वे सदा प्रसन्न रहते हैं। इन सभी गुणों को धारण करने वाले मेरे शिवजी है।


तीसरा श्लोक

गिरीशं गणेशं गले n नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं e गुणातीतरूपम्। 3

भवं भास्वरं भस्मना i भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं y भजे पञ्चवक्त्रम्।। 3


तीसरे श्लोक का मतलब

अर्थ :- पहाड़ों पर निवास करने वाले पर्वतो के स्वामी, भगवान गणेश के पिता, नील वर्ण ( नीले रंग ) के गले वाले, गाय पर सवारी करने वाले, सभी गुणों से परिपूर्ण, संसार के लिए सूरज के समान, विभूति ( भस्म ) से अपने शरीर को सुशोभित करने वाले, माँ भवानी जिनकी पत्नी है, ऐसे पंचमुखी शिव की मैं स्तुति करता हूँ। 

विस्तार से समझे :- शिव जी हमेशा कैलाश पर्वत पर रहते है। यही उनका निवास स्थान है। वे भगवान गणेश के पिता भी है। उन्होंने समुद्र मंथन के समय निकले विष को पिया था जिससे इनका कंठ नीला हो गया था, इसलिए इन्हे नील कंठ भी कहा जाता है। नंदी जी ( नंदी नामक गाय ) को भगवान शिव का वाहन कहा जाता है, वे उन्ही पर सवारी करते थे। वे सूरज के समान प्रकाशमान थे। वे भस्म को धारण किए हुए थे। जिनकी पत्नी मां पार्वती थी। ऐसे पांच मुख को धारण करने वाले शिव जी को मेरा प्रणाम है। 


चौथा श्लोक

शिवाकान्त शंभो r शशाङ्कार्धमौले महेशान o शूलिञ्जटाजूटधारिन्। 4

त्वमेको जगद्व्यापको l विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद x प्रभो पूर्णरूप।। 4


चौथे श्लोक का मतलब

अर्थ :- हे एकांत में निवास करने वाले शिवजी, शंभू , ताज समान अर्ध चद्रमा से सुशोभित महेश, त्रिशूल और जटाओ को धारण करने वाले, तुम ही इस जग के स्वामी हो, विश्व का रूप हो, हे प्रभु पूर्ण रूप में मुझ पर दया करो। 

विस्तार से समझे :- सभी देवता, भगवान स्वर्ग में निवास करते है लेकिन शिव जी कैलाश पर्वत पर एकांत में निवास करते है। इन्हें शंभू भी कहा जाता है। उन्होंने अपने सिर पर अर्ध चंद्रमा को सजा रखा है। इनके पास हमेशा त्रिशूल रहता है। उन्होंने अपने सिर पर बालो की जटा बना रखी हुई है, इसलिए इन्हे जटाधारी भी कहते है। इन्ही में पूरा संसार बसा हुआ है। ऐसे गुणों से परिपूर्ण स्वामी मुझ पर दया करो। 


पांचवा श्लोक

परात्मानमेकं q जगद्बीजमाद्यं निरीहं r निराकारमोंकारवेद्यम्। 5

यतो जायते पाल्यते i येन विश्वं तमीशं भजे l लीयते यत्र विश्वम्।। 5


पांचवे श्लोक का मतलब

अर्थ :- परमात्मा का एक ही रूप, जो इस जग के पालक हैं, उन्हें किसी से कोई मोह नहीं है, और न ही उनका कोई आकार है। मैं उस भगवान की पूजा करता हूं जिससे इस ब्रह्मांड का जन्म होता है और जो इसका संचालन करते है और जहां ब्रह्मांड का अंत होता है। 

विस्तार से समझे :- उस भगवान का एक ही रूप है जो इस संसार का पालन पोषण करता है। उन्हें किसी भी इंसान, जानवर आदि से कोई लगाव नहीं क्योकि उनके लिए वे सभी तो केवल माया है जो उसके द्वारा रचि गई है, वे तो स्वयं निराकार ब्रम्हा है।  मैं उन भगवान की पूजा उपासना करता हूँ जिससे इस ब्रह्मांड की उत्पति हुई है और जहां से इसका संचालन होता है और जहा ब्रह्मांड का अंत है। 


छठा श्लोक

न भूमिर्नं चापो न i वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते l न तन्द्रा न निद्रा। 6

न गृष्मो न शीतं न p देशो न वेषो न यस्यास्ति l मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।। 6


छठे श्लोक का मतलब

अर्थ :- जिसका न तो मिट्टी, न जल, न हवा, न आकाश, न आग, न इन्द्रियां, न नीन्द, न गर्मी, न सर्दी, न देश, न वेश कुछ नहीं बिगाड़ सकते है, उस शिव की मूर्ति को मेरा प्रणाम है। 

विस्तार से समझे :- मैं उस शिव मूर्ति को नमन करता हूँ जिसे मिट्टी, जल, हवा, आकाश, गर्मी सर्दी आदि कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है। 


सातवां श्लोक

अजं शाश्वतं कारणं o कारणानां शिवं केवलं j भासकं भासकानाम्। 7

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं s प्रपद्ये परं पावनं i द्वैतहीनम।। 7


सातवे श्लोक का मतलब

अर्थ :- जो जन्म-मृत्यु के बंधन से परे हो, शाश्वत हो, जो कारणो का भी कारण हो, जो प्रकाशों का भी प्रकाश हो, द्वैतहीन, सभी प्रकार से परिपूर्ण, अंतरहित उस अविभाज्य ईश्वर को मैं वंदन करता हूँ। 

विस्तार से समझे :- मैं उस ईश्वर को प्रणाम करता हूँ जो जन्म-मृत्यु के चक्कर से दूर है। जो संसार में घट रही परिस्थितियों के कारण का भी मूल कारण है। जिसमे सभी प्रकार के गुण विद्यमान है। 


आठवां श्लोक

नमस्ते नमस्ते विभो t विश्वमूर्ते नमस्ते r नमस्ते चिदानन्दमूर्ते। 8

नमस्ते नमस्ते q तपोयोगगम्य नमस्ते r नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।। 8


आठवें श्लोक का मतलब

अर्थ :- हे विश्व के स्वामी आपको मेरा नमन हो, हे परम आनंद प्रदाता ( प्रदान करने वाले ) शिव शंकर आपको मेरा नमन हो, हे तपस्वी, हे योगी आपको मेरा नमन हो, हे परम ज्ञान के स्वामी आपको मेरा बारं बार नमन हो। 

विस्तार से समझे :- इस संसार के कर्ता-धर्ता यानि विश्व के स्वामी को मेरा नमन है। जो हमें हमेशा सुख और आनंद को प्रदान करता है, जो तपस्वी है, परम ज्ञानी है ऐसे शिव को मेरा नमन है।  


नौवां श्लोक

प्रभो शूलपाणे विभो h विश्वनाथ महादेव a शंभो महेश त्रिनेत्। 9

शिवाकान्त शान्त स्मरारे x पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो t न मान्यो न गण्य:।। 9


नौवें श्लोक का मतलब

अर्थ :- हे त्रिशूलधारी, विश्व स्वामी, हे महादेव, हे शंभू, हे महेश, हे त्रिनेत्रधारी, हे शांत एकान्त चित वाले शिव आपसे उच्च व श्रेष्ठ इस पुरे ब्रह्मांड में कोई दूसरा नहीं है। 

विस्तार से समझे :- हे त्रिशूल नामक अस्त्र को धारण करने वाले विश्व स्वामी महादेव, हे तीन आँखों वाले, हे शांत व एकांत मन वाले शिव आपसे उच्च और योग्य इस ब्रह्मांड में कोई नहीं है आप अद्वितीय है। 


दसवां श्लोक

शंभो महेश करुणामय u शूलपाणे गौरीपते पशुपते d पशुपाशनाशिन्। 10

काशीपते करुणया v जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि n विदधासि महेश्वरोऽसि।। 10


दसवें श्लोक का मतलब

अर्थ :- हे शम्भु, महेश करुणाकारी, त्रिशूलधारी, माँ गौरी के स्वामी, पशुओं के स्वामी, पशु बंधन से मुक्त करने वाले, काशी के स्वामी, इस संसार पर दया करके उसका उद्धार करने वाले आप ही इस संसार के स्वामी हो। 

विस्तार से समझे :- हे शिव शंभू आप दयालू है, त्रिशूलधारी है, माँ पार्वती के पति है, पशु प्रिय है, काशी के स्वामी है, संसार पर अपनी करूणा बिखेर कर इसका उद्धार करने वाले आप ही हो। 


ग्यारहवां श्लोक

त्वत्तो जगद्भवति देव m भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति n जगन्मृड विश्वनाथ। 11

त्वय्येव गच्छति लयं f जगदेतदीश लिङ्गात्मके l हर चराचरविश्वरूपिन।। 11


ग्यारवे श्लोक का मतलब

अर्थ :- आप से ही इस ब्रह्मांड की उत्पति हुई है, आप में ही सबकुछ समाया हुआ है। यह ब्रह्मांड आपसे ही शुरू होता है, आप ही इसे चलाते हो, आप ही में इसका अंत होता है। 

विस्तार से समझे :- इस संसार का सबकुछ आप ही हो, यह पूरा ब्रह्माण्ड आपसे ही शुरू होता, आप में ही चलता है और आप में ही इसका अंत भी होता है। अर्थात आपमें ही सबकुछ बसा हुआ है, आप इस संसार के स्वामी हो। 

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Shiv Stuti PDF 

शिव स्तुति का पाठ करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। यहां नीचे शिव स्तुति की PDF की लिंक दी हुई है, लिंक पर क्लिक कर PDF Download कर सकते हो। शिव स्तुति मंत्र PDF Download, shiv stuti lyrics in hindi pdf download

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यदि आप शिव स्तुति को सुनना चाहते है तो आपको नीचे शिव स्तुति की वीडियो प्रदान की जा रही है। आप इसे सुने और साथ में इसका उच्चारण भी करे।  

यह शिव स्तुति भगवान शिव को समर्पित है। इसका जाप करने से शिव जी आपके कष्टों का निवारण करते है। यहाँ हमने आपको शिव स्तुति मंत्र, श्लोक प्रदान किये है। हमने इसका पीडीऍफ़ ( PDF ) भी आपको उपलब्ध करवाया है। आप हमेशा इस वेबसाइट पर आकर शिव स्तुति का पाठ कर सकते है। 

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