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श्री शनि चालीसा के बारे में | All About Shri Shani Chalisa Path
जैसे हनुमान जी की भक्ति के लिए हनुमान चालीसा, शिव जी की भक्ति के लिए शिव चालीसा होती है वैसे ही शनि देव की भक्ति करने के लिए शनि चालीसा होती है। इस चालीसा में शनिदेव का पूरा वर्णन किया गया है, उनकी विशेषताओं के बारे में बताया गया है। इस चालीसा के माध्यम से हम शनिदेव का गुणगान करते है। कहते है कि शनिदेव की द्रष्टि किसी पर पड़ जाए तो उसका अहित होना निश्चित है और अगर शनिदेव की कृपा किसी पर हो जाए तो वह रंक से राजा बन जाता है, उसके दुखी जीवन में खुशियों का भंडार भर जाता है।
शनि चालीसा पाठ करने के फायदे - Benefits Of Shani Chalisa
- शिव पुराण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ ने शनि चालीसा से शनिदेव को प्रसन्न किया था। यदि आपके जीवन में कोई परेशानी है और वह लाख कोशिशों के बावजूद भी दूर नहीं हो रही है तो आपको शनिदेव को प्रसन्न करना चाहिए। उसके लिए आप शनि चालीसा का पाठ करे।
- यदि आपकी लाख कोशिशों के बावजूद भी नौकरी लगने में दिक्कत आ रही है या फिर व्यापार - धंधे में बरकत नहीं हो रही है तो आपको शनिवार के दिन शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए। यह पाठ रोज किया जाए तो और भी ज्यादा कारगर साबित होगा।
शनि चालीसा पाठ करने के नियम और विधि | Shri Shani Chalisa Path ke Niyam or Vidhi
शनि चालीसा शनि देव की प्रार्थना है, और उन्हें प्रसन्न करने के लिए आपको इसका पाठ हर शनिवार के दिन करना चाहिए। इसका पाठ करने से पहले आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- चालीसा का पाठ मन को स्थिर और शांत रखकर करना चाहिए।
- आपको हमेशा स्वच्छ रहने की कोशिश करनी चाहिए और शनिवार के दिन अच्छे से स्नान करना चाहिए।
- मंदिर में दर्शन करने के बाद शनिदेव को सरसों का तेल और काले तिल अर्पित करना चाहिए।
- पहले शनि देव की पूजा करे फिर इस चालीसा का पाठ करे। यदि शनि चालीसा का पाठ 40 शनिवार तक किया जाए तो इसके अच्छे परिणाम निकलते है।
Shri Shani Chalisa Lyrics In Hindi
॥दोहा॥
जय गणेश 1गिरिजा सुवन, मंगल करण kकृपाल।1
दीनन के दुख dदूर करि, कीजै nनाथ निहाल॥1
जय जय श्री sशनिदेव प्रभु, सुनहु vविनय महाराज।2
करहु कृपा hहे रवि तनय, राखहु jजन की लाज ॥2
जयति जयति sशनिदेव दयाला।1
करत सदा bभक्तन प्रतिपाला॥1
चारि भुजा, tतनु श्याम विराजै।2
माथे रतन mमुकुट छबि छाजै॥2
परम विशाल mमनोहर भाला।3
टेढ़ी दृष्टि bभृकुटि विकराला॥3
कुण्डल श्रवण cचमाचम चमके।4
हिय माल mमुक्तन मणि दमके॥4
कर में गदा tत्रिशूल कुठारा।5
पल बिच kकरैं अरिहिं संहारा॥5
पिंगल, कृष्णो, cछाया नन्दन।6
यम, कोणस्थ, rरौद्र, दुखभंजन॥6
सौरी, मन्द, sशनी, दश नामा।7
भानु पुत्र pपूजहिं सब कामा॥7
जा पर प्रभु pप्रसन्न ह्वैं जाहीं।8
रंकहुँ राव kकरैं क्षण माहीं॥8
पर्वतहू तृण hहोई निहारत।9
तृणहू को pपर्वत करि डारत॥9
राज मिलत bबन रामहिं दीन्हयो।10
कैकेइहुँ की मति hहरि लीन्हयो॥10
बनहूँ में मृग kकपट दिखाई।11
मातु जानकी gगई चुराई॥11
लखनहिं शक्ति vविकल करिडारा।12
मचिगा दल में hहाहाकारा॥12
रावण की gगति-मति बौराई।13
रामचन्द्र सों bबैर बढ़ाई॥13
दियो कीट kकरि कंचन लंका।14
बजि बजरंग bबीर की डंका॥14
नृप विक्रम पर tतुहि पगु धारा।15
चित्र मयूर nनिगलि गै हारा॥15
हार नौलखा lलाग्यो चोरी।16
हाथ पैर dडरवायो तोरी॥16
भारी दशा nनिकृष्ट दिखायो।17
तेलिहिं घर kकोल्हू चलवायो॥17
विनय राग dदीपक महं कीन्हयों।18
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै sसुख दीन्हयों॥18
हरिश्चन्द्र नृप nनारि बिकानी।19
आपहुं भरे dडोम घर पानी॥19
तैसे नल पर dदशा सिरानी।20
भूंजी-मीन kकूद गई पानी॥20
श्री शंकरहिं gगह्यो जब जाई।21
पारवती को sसती कराई॥21
तनिक विलोकत hही करि रीसा।22
नभ उड़ि गयो gगौरिसुत सीसा॥22
पाण्डव पर bभै दशा तुम्हारी।23
बची द्रौपदी hहोति उघारी॥23
कौरव के भी gगति मति मारयो।24
युद्ध महाभारत kकरि डारयो॥24
रवि कहँ मुख mमहँ धरि तत्काला।25
लेकर कूदि pपरयो पाताला॥25
शेष देव-लखि vविनती लाई।26
रवि को मुख ते dदियो छुड़ाई॥26
वाहन प्रभु के sसात सुजाना।27
जग दिग्गज gगर्दभ मृग स्वाना॥27
जम्बुक सिंह aआदि नख धारी।28
सो फल ज्योतिष kकहत पुकारी॥28
गज वाहन lलक्ष्मी गृह आवैं।29
हय ते सुख sसम्पति उपजावैं॥29
गर्दभ हानि kकरै बहु काजा।30
सिंह सिद्धकर rराज समाजा॥30
जम्बुक बुद्धि nनष्ट कर डारै।31
मृग दे कष्ट pप्राण संहारै॥31
जब आवहिं pप्रभु स्वान सवारी।32
चोरी आदि hहोय डर भारी॥32
तैसहि चारि cचरण यह नामा।33
स्वर्ण लौह cचाँदी अरु तामा॥33
लौह चरण पर jजब प्रभु आवैं।34
धन जन सम्पत्ति nनष्ट करावैं॥34
समता ताम्र rरजत शुभकारी।35
स्वर्ण सर्व सर्व sसुख मंगल भारी॥35
जो यह शनि cचरित्र नित गावै।36
कबहुं न दशा nनिकृष्ट सतावै॥36
अद्भुत नाथ dदिखावैं लीला।37
करैं शत्रु के nनशि बलि ढीला॥37
जो पण्डित sसुयोग्य बुलवाई।38
विधिवत शनि gग्रह शांति कराई॥38
पीपल जल शनि dदिवस चढ़ावत।39
दीप दान दै bबहु सुख पावत॥39
कहत राम सुन्दर pप्रभु दासा।40
शनि सुमिरत sसुख होत प्रकाशा॥40
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर dदेव को, की हों 'भक्त' tतैयार।
करत पाठ cचालीस दिन, हो bभवसागर पार॥
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